Status of Cows at present in our nation
YE JINDAGI
8/4/2021
Importance of cow in Vedas
हज़ारों वर्षों की इतिहास में गोपालन के साथ ही गाय से संबंधित संस्कार व संस्कृति का विकास हुआ हैं। वेद व पुराण गायों की महिमा और उनकी कहानियों से भरे पड़े हैं। कामधेनु व कपिला की कहानियां इसके उदाहरण हैं।
श्री कृष्ण का बालपन गौवों के साथ बीतता है यह जग विदित है।गोपालन व इनकी सेवा; धर्म का कार्य माना गया हैं। आज भी बहुत से हिंदुओं की रसोई में सबसे पहली रोटी इनके लिये ही बनाई जाती है। देवी व देवताओं के पूजन में दूध, दही, व घी का प्रयोग गौ उत्पाद ही है। इनके गोबर से घर लीप कर घर को शुद्ध करने की परंपरा रही हैं।
Why cow is called mother
गाय को मां का दर्जा देकर उसे गौ माता की उपाधि दी गई है। क्यों ना हो! ऐसा कौन है जिन्हें शिशु या बाल्यावस्था में दूध का सेवन कर अपनी प्राण ऊर्जा बढ़ाने का अवसर प्राप्त न हुआ हो।
बहुत से शिशुओं की जान इन्हीं के दूध को पिलाकर बचाई जाती हैं. रोगी हो या सेहतमंद सभी इसके दूध पर निर्भर है. तो ऐसा गौरवशाली भागीदारी हमारे जीवन में इन गायों का रहा है।
वर्तमान में गायों की दुर्दशा | The Plight of the cows at present
अब आज की स्थिति का अवलोकन करते हैं। अपने घर में ताजे व शुद्ध दूध, दही या घी की आवश्यकता व उपयोग हम सदा से करते आये हैं। कुत्ता पालना अच्छी बात है, शौक से पालियें। एक ही घर में दोनों के साथ होने वाले व्यवहार में जमीन आसमान का अन्तर नजर आता है। डॉगी को सोफ़े पे सोना अच्छा लगता है पर घर की गाएं गली-गली मारी-मारी फिरती हैं। एक को चूमा-चाटी तो दूसरी को भूसा-लाठी!
कभी घर से बाहर निकल दिल से झांक कर देखिए किसी भी गायों की क्या हालत है। निरीह, बेबस, कमजोर, कुपोषित, बीमार और बे-आसरा।
आज इनकी दशा बड़ी ही शोचनीय हो चली है। सरसरी निगाह से देखी जाए तो शहरी क्षेत्रों में दो तरह के गोपालक होते हैं।
एक वे डेयरी संचालक जो बड़ी संख्या में गो-पालन करते हैं और उनके दूध का व्यापार करते हैं और दूसरे वें जो घर में व्यक्तिगत स्तर पर गोपालन करते हैं। वजह वही गाय का दूध। चाहे पैसों के लिए या दूध के लिए ऐसे गोपालकों द्वारा इनकी दशा बड़ी ही खराब कर दी गई है।
Who is Responsible for it?
इनकी ऐसी स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार हैं? हम सब की मनः स्थिति क्या है? हम सबका मानना है कि यह जिम्मेदारी उसकी है जो इसे पालते है और उसकी दूध का व्यापार कर पैसा कमाते हैं। चूकिं दूध के बदले पैसा देकर इसकी भरपाई कर देते हैं इसलिये हमारा सोचना है कि 'हमारी जिम्मेदारी यहीं पर समाप्त' हो जाती है।
कहने को तो घर में गाय पालते हैं परंतु अब जमीन की कमी के कारण ये सभी दरवाजे से बाहर पलती है। ज्यादातर घरेलू गोपालक दूध निकाल कर उन्हें भगवान भरोसे छोड़ देते हैं। भरपेट चारा इन्हे नसीब नहीं होता है और घर-घर भिखारियों की तरह खाने के लिए भटकती रहती हैं। यहाॅ तक की कई कचरा भी खाकर पेट की आग शांत करती हैं। गोपालक यह नहीं सोचते कि ये क्या खायेंगी? कहां आराम करेंगी?
बरसात का मौसम हो तो ये बेचारी सदैव पानी से बचने वाली गैया, मकानों की दीवारों से चिपक कर या उनकी ओट लेकर बेचारी खड़ी रहती है। इसी तरह भीषण सर्दी में ये घर के बाहर गलियों में बेआसरा कांपती हुई यह बेजुबान कोई शिकायत नहीं करती है।
Worst health status of cows
अब इनकी सेहत पर जरा ध्यान दें। लगभग सभी गायों की पेट बहुत ही फूली हुई नजर आती है। क्या यह इनकी सेहत है? कदापि नहीं। यह हमारे और आपके घरों से फेंकी गई पॉलिथीन, जिसमें हम खाने-पीने की सामान या कचरा भरकर फिर गांठ लगाकर बाहर फेंक देते हैं। वह इन्हें खाकर बीमार पड़ रही है।
जरा सोचिए ऐसी गायों का दूध पीकर क्या हम या हमारे नौनिहाल सेहतमंद बनेंगे? कदापि नहीं! जरा सोचिए कैंसर व किडनी की बीमारी इतनी आम क्यूँ हो गई है? क्या यह प्रदूषित दूध के कारण नहीं हैं? यह पॉलिथीन का पाप किसके सिर पर है? क्या आपको नहीं लगता है कि इनकी दशा बड़ी सोचनीय और खराब है।
Our Carelessness
कुछ देर गौर से देखने पर यह अधिकतर घायल मिलेंगी। अंधाधुंध तेज रफ्तार वाहनों के कारण सड़क किनारे बैठी हुई गायों के पैरों के ऊपर से वाहन निकालना अब आम-सी बात हो गई है। लगभग हर दूसरी गाँयों की पैर जख्मी हालत में मिलेगी। इनके घांवों में मवाद भर जाता है और मक्खियां भिनभिनाती रहती है। क्या किसी ने इन्हें ईलाज मिलते हुए देखा है?
Great Movements for Improving Status
देश में गायों की हालत सुधारने और उन्हें बध होने से बचाने के लिए आजादी के बाद बहुत सारे समाजसेवियों और संतो ने अप्रतिम योगदान दिया है जिसे हम निम्न प्रकार से समझ सकते हैं-
1- सन् 1955 में हिंदू महासभा के अध्यक्ष निर्मल चंद्र चटर्जी ने गोवध पर पर रोक के लिए संसद में एक विधेयक पेश किया।
2- सन् 1965 66 में प्रभुदत्त ब्रह्मचारी, स्वामी करपात्री जी तथा देश के अनेकों संतों ने गोवध बंदी को एक आंदोलन का रूप दिया तथा 7 नवंबर 1966 को संसद भवन के सामने धरना शुरू कर दिया जिसमें गोलीबारी के कारण कई संतों की जान गई।
3- रामजी सिंह ने 12 अप्रैल 1978 को संविधान के निर्देश पर कार्यवाही करने के लिए कानून बनाने की मांग की।
4- 12 अप्रैल 1979 को विनोबा भावे ने अनशन प्रारंभ किया।
तो इस तरह से हमारे महान नेताओं और संत समाज द्वारा समय-समय पर गोवध संबंधी समस्याओं को उठाते रहे हैं । इसके परिप्रेक्ष्य में यह भी समझनी चाहिए कि यह बात केवल गोवध तक सीमित नहीं है बल्कि इनकी सेवा व रखरखाव भी अच्छी तरह से होनी चाहिए।
Current Scenario of benefit for Cows
आज यह कार्य गौ रक्षकों द्वारा संपन्न किया जा रहा है। देश के सभी प्रांतों, जनपदों, शहरों व गांवों में इनकी उपस्थिति देखी जा सकती है, परंतु इसके बाद भी गौवों की दशा या कहे दुर्दशा सर्वत्र देखी जा सकती है।
कहने को तो सरकार द्वारा पशुओं की सुरक्षा व देखभाल के लिए मंत्रालय और विभाग है परंतु क्या कोई अधिकारी या कर्मचारी अपने कार्यालय से बाहर निकल कर इनकी सुरक्षा या उपचार के लिए कोई कोशिश शायद ही किया हो.
साथ ही हमारी नगर पालिकाएं भी इन बातों को देख सकती है परंतु उनके नाक के नीचे ही यह सब चलता रहता है परंतु इन सब बातों के लिए किसे चिंता है। और अन्त में यक्ष प्रश्न; क्या हम कुछ कर सकते है?