Importance of Books at Childhood

EDUCATIYA

umesh ch oberoi

8/8/2020

किताबें भी बिल्कुल मेरी तरह है, अल्फाज से भरपूर मगर खामोश 

- अज्ञात शायर

     किताबें, किताबें हाय किताबें। इन खामोश, कागज पर खींची हुई आड़ी तिरछी लकीरों ने हमारी जिंदगी में तूफान खड़ी कर रखी हैं। शायद पहली बार माँ की गोद में बैठ कर देखी थी किताबें; कितनी रंगीन थी उसकी हर पन्ने। वो आम, वो बुढ़िया, वो तितलियों का फड़फड़ाना। सचमुच ये किताबें खिड़कियाँ है दुनियाँ को देखने के लिए।

     पता ही नहीं चला इन किताबों ने कब बचपन की सारी खूबसूरत लम्हों को मुझसे जुदा कर दिया। बहुत सारी किताबें आई और चली गई। कहने को तो हम किसी ईल्म में माहिर गए। क्या अलजेब्रा, क्या इतिहास, क्या साइंस, क्या इतिहास उस्ताद खुश होते चले गए।

     माँ-बाप की झुर्रियों में मेरी काबिलियत दर्ज है। पर मुझे क्या मिला, उन ढेर सारी कागजों के बदले ईक और कागज जिसे बाद में जाना इसे रपट कार्ड कहते हैं। पता नहीं किन-किन को नाज़ था मेरी इन रपट कार्डों पर लिखी हुई इबारतों का। उन किताबों में लिखें ढेर सारे फलसफें अब मुझे याद नहीं। सच कहता हूँ।

खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हरफ लिए, सवाल यह है किताबों ने क्या दिया मुझकों

-नजीर बाक़री

Memories of Books

     पीछे मुड़कर देखता हूँ कि क्या है मेरी बचपन के पन्नों में। जालिम किताबें तू कहीं नजर नहीं आई। बड़ी अजीब बात निकली यादों की उन गलियों से। वों नटखटपन, वों शरारतें, वों उछलकूद-धमाचौकड़ी, यारों के साथ मस्ती के दिन यही सब रह गए हैं मेरे पास। अतीत के फूलों के रूप में जिसकी खुशबू से मेरी रूह को सुकून मिलता है और मुस्कान कुछ गुलाबी हो जाती है। यही मेरी खजानों के नायाब नगिनें है जिसे मैं समय-समय पर यादों के गलियों से चुनकर लाता हूँ।

     अब उन किताबों की बात कोई नहीं करता। ना हीं यार, ना उस्ताद और ना ही माँ और बाबूजी और ना ही उन पर लिखी फॉलसफों का। क्या बात हैं। जिनके लिए जाने कितनी डांट पड़ी, मार खाई, ताने सहे। पर साथ रहा वहीं लड़कपन की गलियों की शरारतें, खेलकूद, धमाचौकड़ी। क्या अजीब बात है जिन्हें आवारापन या बैगरतों का शगल समझा गया वही रह गया मेरे पास। 'पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे होगे खराब'। वाह।

Great books, that life requires

     गाहे-बगाहें कुछ खुशबूदार किताबें भी मिल जाया करती है जिनकों पढ़कर दिल इनकी महक से सराबोर हो जाती हैं तो कहीं पढ़ी हुई जुमला सटीक जान पड़ता है

'Books is your best friend'

    मैंने जिंदगी में अच्छी किताबें तब पढ़ी जब पढ़ाई छोड़ दी या खत्म हो गई। है न ताज्जुब की बात। शायद आपके साथ भी ऐसा ही हुआ हो। जब पहली बार 'डेल कार्नेगी' की 'लोक व्यवहार' पढ़ी तब ऐसा लगा कि अब से पहले कुछ भी पढ़ा ही ना था। सिफर था।

     इन किताबों ने मुझे कही का न छोड़ा, न ही मैंने इन्हें। हुआ यूँ कि छुटपन की ये जबरियाँ यार मेरी जरूरत बन गई। बचपने की कामिक्स, चन्दामामा, पराग या नन्दन वाली सोहबत आगे भी चलती रही। हाँ अब उनके विषय बदल गये हैं, हर तरह की किताबों से वास्ता रहा।

    काँश ऐसी किताबें भी पढ़ाई जाती या कोर्स में होता; इन्हें भी हमारे खज़ाने का हिस्सा बनाया जाता। माँ, बाऊजी, दीदी या भैया इनसे हमारा वास्ता कराते जैसे बाकी रिश्तेदारों का कराया गया।

Importance of Books

     पैसा आती रही जाती रही पर अपनी खुशियों से खरीदी गई ये किताबें मुझे बहुत सुकून देती रही हैं। इनमें स्याह रोशनाई से लिखी गई ईबारतें यकीन मानियें मेरे लिए सुनहरी हर्फे हैं। लिखने वाले, दिल की गहराईयों से नायाब मोती चुनचुन कर इनमें सजाते हैं। इनपर खर्च की गई कुछ रूपयें बदले में ये लाखों की उजाले दे जाते हैं।

     सालों पहले खरीदी गई 'गीता' अब रोज पढ़ी जा रही हैं। अब सोचता हूँ कि देर क्यों कर दी। इसने हर बुरे वक्त में मुझे बचाया है, सम्भाला हैं और राह दिखाया हैं। क्यों न हों हम सबके मनमोहन किसन के मुख से निकली है जो। अब ये सच्चे दोस्त सी एहसास कराती हैं.

Creating interests in a book

     तकरीबन पाँच या छः साल पहले की बात है बारहवी दर्जे की लड़कियों की क्लास में मैंने जबरन कुछ लाइनों की कविता लिखने को दी; कुछ देर बाद शानदार कविताओं का ढेर सामने था और चुनिंदा कविताओं को असेम्बली में पढ़ा भी गया।

     कितने ही माता-पिता परेशान रहते हैं कि उनका बच्चा पढ़ता ही नहीं या किताबों से जी चुराता हैं। पर क्या सोचा है कि बच्चे को स्कूली किताबों के अलावा क्या कोई दूसरी किताब खरीद कर दी जा सकती है।

     जाईये किताबों की दुकान पर, देखियें क्या-क्या है आपके दुलारों के लिए। कुछ उनपर खर्च कीजिए। कभी अखबार पढ़ने दी हें या उनसे पढ़ाया हैं? हर उम्र के बच्चों के लिए बहुत सी किताबें छपती हैं। यकीनन यह खर्च आगे चलकर अच्छा इन्वेस्टमेन्ट बनेगा।

You have to do

     कई सक्षम घरों के अभिभावकों का रिकार्ड रहा है कि वें अपने ऐब या शौकों पर तो हर महीने हजारों खर्च कर देते है पर बच्चों को पढ़ने लिए उनके बजट में कुछ नहीं होता है और आगे बढ़कर कहना चाहूँगा कि वें इतनी दूर तक सोचा भी नहीं करते।

     मेरे खुद के तजर्बा में यह आया है कि देखते ही देखते कई किताबों की दुकान हमेशा के लिए बन्द हो गई क्योंकि पढ़ने वाले अब नहीं रहें। बच्चों से पढ़ने की उम्मीद लगायें अभिभावक खुद पढ़ने की आदत डालें। अच्छी किताबों से दोस्ती करें, उन्हें समझें, बच्चों से जिक्र करें, सवालात करें।

Keep interest with the help of Technology

     अब तो स्मार्टफोन का जमाना है इसमें आप अच्छी किताबों की लाइब्रेरी बना सकते हैं। डिजिटल ई-बुक डिवाईस वाजिब दाम पर मिलते हैं। खोजिये, पढ़िये और पढ़ाईये। किसी और के लिए न सही खुद के लिए ही भला। यह सौदा कभी भी नुकसान नहीं देंगी।

कागज़ में दबकर मर गए कीड़ें किताब के, दिवाना बेपढ़े लिखे मशहूर हो गया।

- बशीर बद्र।

person reading book while drinking beverage
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