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EDUCATIYA
umesh ch oberoi
4/21/2025
Why are top educational boards (CBSE, ICSE, CISCE) losing parents attraction?
देश में पिछले एक दशक से अपने बच्चों को स्कूल या कॉलेजों में पढ़ाने वाले अभिभावकों का वर्गीकरण किया जाये तो इसकी तीन वर्ग या कैटेगरी होगी। पहला- सरकारी या गली-कूचों में खुले कम फीस व निम्न-स्तर के स्कूल-कॉलेज जो सामान्य या गरीब जनता की पसन्द या मजबूरी होती है, दूसरा- मध्यम वर्गों के लिए बने स्कूल-कॉलेज जिनका नारा “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें नौकरी दूँगा”, तीसरा- वें स्कूल-कॉलेज जो ऊच्च वर्गों का पैसा लेकर उनके बच्चों को सीधे अफसर बनाने का दावा करते हैं। जबकि हकीकत यह है कि कोई भी छात्र जो सफलता या ऊॅची मुकाम हासिल करता है, वह उसके और अभिभावक के मार्गदर्शन और कठिन परिश्रम का परिणाम होता हैं।
यहॉ पर तीसरी कैटेगरी में आने वाले अभिभावकों को मैं स्वयंभू “सजग Parents” नाम देना चाहूँगा। अन्यथा बिरलें ही होंगे जो अपने बच्चों को अच्छे परिवेश व शिक्षा न दिलाना चाहेंगे। एक “सजग Parents” भारतीय और अंतरराष्ट्रीय बोर्डों (International Boards) के बीच बटे हुए हैं जो धीरे-धीरे अंतर्राष्ट्रीय बोर्ड जैसे IB और कैम्ब्रिज को अपने बच्चों के लिए पसंद कर रहे हैं। इन बोर्डों की कौशल-आधारित शिक्षा, बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास पर ध्यान और विदेशी विश्वविद्यालयों में प्रवेश का आधार पारंपरिक बोर्डों से दूर जाने के लिए मजबूर कर रहे हैं।
यही कारण है कि देश के शहरों में पिछले कई वर्षों से IB और कैम्ब्रिज पाठ्यक्रम वाले स्कूलों के खुलने की दरों में वृद्धि हो रही है। इन स्कूलों और कॉलेजों के भारी-भरकम फीस स्ट्रक्चर के बावजूद “सजग Parents”, education देने के नए और innovative तरीकों पर invest कर रहे हैं।
मेरे एक परिचित दुविधा में है। उनका पुत्र और पुत्रवधू दोनों बैंगलौर की प्रसिद्ध मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पैकेज के साथ नौकरी कर रहे हैं। उनका पौत्र तीन साल का हो चुका है, और अब उनके बेटे को बच्चे के लिए स्कूल चुनने का समय आ गया है। उस कपल ने अपनी पूरी educational life एक पारंपरिक राज्य बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त स्कूल में अच्छा प्रदर्शन किया और फिर कॉलेज और पेशेवर जीवन में सफलता हासिल कर रहे हैं।
अब, नयी परिस्थितियों में उन्हें बहुत कुछ अलग लग रहा है। उनके परिचित और रिश्तेदार अपने बच्चों को अंतरराष्ट्रीय स्कूलों में दाखिल करवा रहे हैं जो IB या कैम्ब्रिज के पाठ्यक्रमों के अनुसार चलते हैं। ज्यादातर अभिभावक भारी दबाव में है क्योंकि इनकी फीस बहुत हैं, फिर भी जिस सोसाईटी के साथ इनका संबंध हैं वें इसे अपने बच्चे के लायक मानते हैं।
इस तरह की समझ केवल उपरोक्त परिचित कपल के साथ ही नहीं बल्कि देश के हजारों परिवारों में पनप रही है। "सजग Parents", शिक्षा के मामले में देश की वर्तमान स्थिति को जानते हैं और इसके खिलाफ सक्रिय रूप से आगे बढ़ रहे हैं। यह सबको समझने की जरूरत है कि ऐसे अभिभावक जो स्वयं तो पारंपरिक राज्य या केन्द्रीय बोर्ड से पढ़कर यहॉ तक पहुँचे हैं, अब वे अपने बच्चों के लिए अंतरराष्ट्रीय बोर्ड का चयन क्यों कर रहे हैं?
सजग Parents बदलाव क्यों कर रहे हैं?
कौशल-आधारित शिक्षा: पारंपरिक बोर्ड जैसे कि CBSE आदि रट्टा मारने और हेमवर्क करने के सिद्धांत पर निर्भर करते हैं, जबकि अंतरराष्ट्रीय पाठ्यक्रम आलोचनात्मक सोच, खोज, टीमवर्क और वास्तविक जीवन में अनुप्रयोग पर ध्यान केंद्रित करते हैं - ये वो क्षमताएँ हैं जो हम सब भी चाहते थे कि कांश हमने भी पहले सीखी होतीं। इसलिए "सजग Parents वैश्विक प्रवृत्तियों के प्रति अधिक जागरूक हैं और समझते हैं कि भविष्य की सफलता केवल मार्क्स पर निर्भर नहीं है - बल्कि यह संचार, सहयोग और अनुकूलनशीलता के बारे में है। आईबी और कैम्ब्रिज बोर्ड प्रारंभिक वर्षों से प्रश्न पूछने, समस्या-समाधान और स्वतंत्र सोच को बढ़ावा देते हैं।
वैश्विक गतिशीलता और एक्सपोज़र: अंतरराष्ट्रीय शिक्षा की बढ़ती अपेक्षाओं के साथ, विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए ओवरसीज बोर्ड एक उत्कृष्ट मंच माने जाते हैं। आईबी डिप्लोमा प्रोग्राम के ग्रेजुएट्स को अन्य बोर्डों के मुकाबले यू.एस.ए. और यूके की संस्थानों में एडमिशन के लिए अधिक वरियता दी जाती हैं। पिछले वर्षों की तुलना में प्रति वर्ष विदेशी विश्वविद्यालयों में भारतीय छात्रों की संख्या में तेज वृद्धि देखा जा रहा हैं।
समग्र विकास: आईबी और कैम्ब्रिज परीक्षाओं में प्रोजेक्ट कार्य, आंतरिक आकलन और निरंतर मूल्यांकन शामिल होते हैं, जो परीक्षाओं का बोझ कम करते हैं और समग्र विकास को बढ़ावा देते हैं। ये "सजग Parents" अपने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के प्रति अधिक जागरूक हैं। उनका सोचना है कि जिस दबाव-भरे माहौल में वें पलें हैं, उसे अपने बच्चों को सामना न करना पड़ें। ऐसे अंतर्राष्ट्रीय शैक्षिक संस्थानों में, विस्तृत आकलन किए जाते हैं और इसमें गतिविधियाँ, परियोजनाएँ और कक्षा में भागीदारी शामिल होती है। यहॉ ऐसा माहौल होता है जो बच्चों को सीखने में आनंद की अनुभूति देता है बजाय इसके कि यह डर पर आधारित हो।
साथियों का प्रभाव और धारणा: शहरों में, अंतर्राष्ट्रीय बोर्ड, प्रगतिशील पालन-पोषण एक status symbol बन गए हैं। अभिभावकों पर अपने समाज व साथियों का दबाव पर निर्णय लेना कोई नई बात नहीं हैं। वें चाहते है कि उनका बच्चा किसी से पिछड़ न जाये या वें प्रगतिशील कहलायें।
तो सोच क्या है?
ये “सजग Parents” अपने अपने शैक्षिक जीवन के स्कूलिंग और वर्तमान परिदृश्य के अंतर के बारे में अधिक परिचित व सजग हैं। वे अपने बच्चों के लिए केवल अच्छे अंक नहीं, बल्कि भावनात्मक रूप से मजबूत, वैश्विक रूप से सक्षम Personality की कामना करते हैं।
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