Fresh Water is Essential for Life

DESH APNA

4/29/2021

clear drinking glass on gray surface
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woman in black tank top drinking water
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an and woman washing in water fountain with free-flowing water
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Why freshwater is important?

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।  पानी गये न उबरे मोती, मानस, चून ।।

- रहीम

     जीवन बनाये रखने के लिए पानी की कितनी आवश्यकता है यह सब हम जानते हैं. तभी तो कहा जाता है 'जल ही जीवन है'. हवा के बाद इसकी आवश्यकता होती है. यह कितना महत्वपूर्ण है यह इस बात से समझा जा सकता है कि हमारे शरीर का 70 प्रतिशत तक का हिस्सा पानी अर्थात् हमारे रोम-रोम, रेशे-रेशे में पानी रचा-बसा हैं.

     ईश्वर ने पानी को महत्वपूर्ण समझा तभी उसने हमारे शरीर को पानी से बनाया. इसी तरह यदि विज्ञान की दृष्टि से देखें तो पृथ्वी पर सर्वप्रथम जीवन, जल से ही बना और उसी में पनपी हैं. लाखों वर्षों के मानव-सभ्यता के विकास के क्रम में पानी का महत्व बहुत अधिक हैं.

      यह एक तथ्य ही है कि धरती की कुल पृष्ठिय क्षेत्र का लगभग 70 प्रतिशत भाग पानी से ठकी है लेकिन पीने योग्य पानी केवल 10 प्रतिशत ही है। है न ताज्जुब की बात.

It affects the great civilization

     सभी प्राचीन सभ्यताएं पानी के स्रोतों के पास ही विकसित हुई हैं. दुनियाँ के प्रसिद्ध शहरों को नक्शों पर देखें तो वे सभी नदियों के किनारे ही पनपी हैं. अपने देश के उत्तरी भू-भाग के विकास में कई नदियों का ही योगदान रहा है और कई सभ्यता और संस्कृतियों का विकास हुआ. हम सब इस सभ्यता को भी गंगा-जमुनी तहज़ीब के नाम से भी जानते हैं.

Prayer in Vedas

     वैदिक कालीन भारत में नदियों और उसके जल को पवित्र माना जाता था, तब इनकी पूजा अर्चना की जाती थी. यह परंपरा अभी तक चली आ रही है.

हिरण्यवर्ण: शुभकरण: पावका यासु जात सविता या स्वग्निः। या अग्नि भावे सुवर्णस्ता न तुम शं स्योना भवति ।।

(जो जल सोने के समान आलोकित होने वाले रंग से संपन्न, अत्यधिक मनोहरता प्रदान करने वाला है, जिससे सवितादेव और अग्निदेव उत्पन्न हुए हैं, जो श्रेष्ठ रंगवाला अग्निगर्भ है, वह जल हमारी व्याधियों को दूर करके कोको को प्रसन्नता और शांति प्रदान करते हैं- अथर्ववेद)

     जगत प्रसिद्ध कुम्भ मेले का आयोजन किसी न किसी नदियों के किनारे ही होता आया है. वेदों में कितनी ही ऋचाएं नदियों और जल के लिए हैं जिसे आज भी उतनी ही श्रद्धा से पढ़ी जाती हैं. हिन्दू धर्म में पानी या जल का स्थान ऊँचा ही रहा हैं. हमारे सभी धार्मिक कर्म-कांड जल के बिना संभव नहीं है. बल्कि सभी धर्मों में यह पूजा या प्रार्थना से पहले शुद्धीकरण का कार्य करती हैं.

How important is it?

     एक सर्वसम्मत राय यह है कि जल हमारे तन और मन दोनों को पवित्र करती हैं. हमारे जीवन की ऊर्जा का आधार खेत, जंगल, पेड़- पौधे ही हैं. इन सबको फलीभूत होने के लिए पानी की आवश्यकता पड़ती ही है. ये पेड़-पौधे धरती से अणु-अणु जल लेकर फल और फ़ूलों को सींचते हैं. यह सब किसके लिए? हम सबके लिए. इतनी जीवनदायिनी जल, धरती व आकाश हमें उपलब्ध कराती हैं परन्तु बदले में हम प्रकृति को क्या वापस करते हैं? गंदा और प्रदूषित जल.

     अब आइये प्रयोग करके देखें; किसी नाली से एक ग्लास पानी लेकर उसे अपने सामने मेज पर रखें और यह संकल्प ले की 'जब तक इसे साफ न कर लू तब तक अन्य जल नहीं पियूंगा'. कितना समय लगा? कौन-सी तरकीब अपनाएँगे? अब आपको समझ आ गया होगा कि यह काम कितना कठिन है.

What nature does?

     करोडों टन पानी शुद्ध कर बिना किसी शिकायत या ख़र्चे के हमारी प्रकृति लाखों लाख वर्षों से कर रहीं हैं. हमारे द्वारा किये गये गंदे पानी को सूरज भाँप में बदल कर वापस धरती पर भेज देता है और धरती उसे अपने आंचल में समेटकर रख लेती हैं और हर समय सभी को बिना किसी भेदभाव के उपलब्ध कराती हैं.

What we does with it?

     वर्तमान परिस्थितियों में इन स्वच्छ-निर्मल जल का क्या हो रहा है? जितना पानी हमें प्रयोग करना है उससे ज्यादा इन्हें यूॅ ही नालियों में बहा दिया जाता है. ऐसे बहुत से काम जिसमें ताजे या स्वच्छ पानी की आवश्यकता नहीं पड़ती है उसे भी हम सब स्वच्छ पानी से निपटा देते हैं. बड़ी ही निर्दयता से.

      कई ऐसे घर-परिवार है जो इन मूल्यवान जल को बहाने में अपनी शान समझते हैं. उनकों इस बारे में अवगत कराये तो बुरा मान जाते है और लड़ने लगते हैं फिर और भी ज्यादा पानी बहाने लगते हैं. उनके नहाने के बारे में दावा किया जा सकता है कि जहां वें शरीर में ज्यादा से ज्यादा पानी डालने को नहाना समझते हैं वहीं कमोड में उन्हें प्रयोग के बाद कम से कम पानी डालते हैं. यह विडंबना ही हैं.

Practice and practical for saving freshwater

     यदि कानूनन इन भूजल के दोहन अवैध करार दिया जाये और कोई भी व्यक्ति या संस्थान को धरती से पानी निकालने की पूरी तरह से मनाही हो जाये और जनता आवश्यकता के लिए पाइप लाइन या कैनों में पानी की सप्लाई की जाये तो क्या होगा?

आईये एक अनुमान लगाते हैं प्रतिदिन पानी की इस्तेमाल की मात्रा को(प्रति व्यक्ति के अनुसार):-

1- Toilet प्रयोग 20 लीटर.

2- नहाने के लिए 20 ,,

3- कपड़ा धोने के लिए 30 ली.

4- घर की सफाई में 05 ली.

5- भोजन बनाने में(3 वक़्त) 06 ली.

6- अनाज व सब्ज़ी साफ करने में 05 ली.

7- पीने के लिए 04 लीटर

     तो इस तरह कुल 90 लीटर का औसत प्रति व्यक्ति प्रतिदिन बनता है. यदि एक औसत परिवार में 4 सदस्य मान लिया जाएं तो एक महीने में 90X4X30=10800 लीटर पानी बनता है. अब यदि पानी खरीद की दर 1 रुपया प्रति लीटर हो तो हमें हर महीनें कुल 10,800 रुपये केवल पानी के लिए खर्च करने पड़ेंगे. तो अब कहावत सिद्ध हो जायेंगी की 'धोए क्या और निचोड़े क्या'. तो फिर आप पानी की ख़र्चे की बजट बनाने लग जाएंगे. इससे इसके मूल्यवान होने का भान हो गया होगा.

7 Simple steps to be taken to save freshwater

     इससे पहले कि पानी की समस्या विकराल रूप धारण कर लें हम सबको इसकी किफायत शुरू कर देनी चाहिए. व्यक्तिगत रूप से 'पानी बचाओ' कमेटी बनाकर छोटे-छोटे स्तर पर निम्नानुसार कार्य किया जा सकता हैं:-

1- बहुधा गृहणियां बर्तन, कपड़े धोते या नहाने के लिए जेट या submersible पम्प का प्रयोग सीधे और बहुत देर तक करती हैं जिससे पानी आवश्यकता से अधिक बहती रहती है. इससे अच्छा हो कि इन्हें स्टोर कर प्रयोग किया जाता. यद्यपि शिक्षित घर की महिलाएं इस बात से वाकिफ है की पानी को व्यर्थ नहीं जाने देना हैं.

मेरे संज्ञान में वर्षो के अनुभवों के आधार पर यह बात कही जा सकती हैं कि ग्रामीण व कस्बाई क्षेत्रों से शहरों में आने वाली अधिकतर महिलाएँ पानी की बर्बादी बहुत करती है. उनको पानी को व्यर्थ नष्ट न करने के लिए कहें तो 'mind your business' टाइप की बातों से जवाब देती हैं. यह बात इनकी संतानें भी सीखती है. क्या ये भविष्य में पानी खासकर साफ़ पानी के महत्व को समझ पाएंगे?

2- कार या बाइक को धोने के लिये घरों में भी लोग आवश्यकता से अधिक स्वच्छ पानी का प्रयोग करते हैं, वो जानते हैं कि पानी का लेवल बहुत नीचे चला गया है पर यह समस्या "मेरी बला से" कह कर टाल देते हैं.

3- कुछ तथा-कथित समाज-सेवी संस्थानों के लोग "पानी बचाओ" अभियान में 'save water' पर essay लिख लाते और माइक के सामने बहुत हो-हल्ला मचाते हैं; बड़ी लंबी भाषण देते हैं. ऐसे समाज सुधारक, यदि यह कार्य अपने घर से ही यह अभियान शुरू करें तो कितना अच्छा होता.

4- आपने देखा होगा कि ज्यादातर जगहों पर वाहन धोने की व्यापार चल निकली है. ये उद्योग प्रतिदिन हजारों लीटर स्वच्छ जल का प्रयोग करती है जिसे बनाने में प्रकृति को कई महीने लगते हैं. क्या यह प्रकृति के साथ खिलवाड़ नही है? यह कार्य वैधानिक रूप से बन्द होनी चाहिए और Recycle पानी के प्रयोग की ही अनुमति दी जानी चाहिए.

5- कुछ लोग बड़े भारी पम्पों का प्रयोग कर धरती से पानी निकलकर बेचने का कार्य कर रहे हैं. अलबत्ता यह अच्छी बात है कि ये जरूरतमंदों को पानी मुहैया कराते हैं परन्तु क्या इन्हें जल संचय, water recycle इत्यादि की जिम्मेदारी नहीं निभानी चाहिए?

6- पानी पर आधारित या उनको प्रयोग करने वाले उद्योगों पर भी rain-water-storing, water -treatment इत्यादि के नियमों का कड़ाई से पालन करने की जिम्मेदारी होनी चाहिए.

7- शहरी क्षेत्रों में बड़े-बड़े सरकारी या नागरिक भवनों में भी वर्षा जल संचय करने की योजना को बढ़ावा देने की आवश्यकता है. इसके लिए इन भवनों के नक्शा पास करते समय ही अग्नि-शमन की तरह ही वर्षा जल-संचय की जिम्मेदारी भवन निर्माताओं को दी जानी चाहिए और यदि आवश्यक हो तो उन्हें तकनीकी ज्ञान और तकनीक भी मुहैया करानी चाहिए.

Few steps for us

     अंत में उपरोक्त समस्याओं पर हमसब अपने स्तर से जागरूकता के लिए मोहल्लों, कॉलोनियों व रिहाइशी सोसायटी में विभिन्न प्रकार के प्रयास किए जा सकते हैं:-
     घर-घर और अपने क्षेत्रों में पड़ने वाले संस्थाओं में जाकर पानी की बर्बादी को रोकने की बात समझाई जाये.

  • पानी की बर्बादी न करने के अनुरोध को pamphlets छापकर घर-घर बाँटी जायें.

  • सभी धार्मिक स्थलों में जाकर धर्मगुरुओं से इस बाबत बात की जाएं और वहां आने वाले श्रद्धालुओं को समझाने का काम इन्हें सौंप दिया जाये.

  • शैक्षणिक संस्थानों में यह कार्य शिक्षक, विद्यार्थियों को बताएं कि साफ पानी की बर्बादी न की जायें. साफ पानी का हमारे जीवन के लिए कितना महत्वपूर्ण हैं इस बात की और इन्हें व्यर्थ न जाने देने की बात बच्चों को समझ में आ जाये.

निवेदन- अंत में आप सभी से विनती है कि इस कार्य में अपना योगदान किसी भी रूप में दें.
एक प्रश्न- बाजार या घर के बाहर आप ठेलों, होटल और रेस्तरां में गंदा पानी पीते हो और घर में साफ पानी बर्बाद करते हो, क्यों?