A Letter to GOD

SPIRITUALITY

umesh ch oberoi

5/4/2021

black and silver fountain pen
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                                                                A Letter to GOD

हे परमपिता परमेश्वर,

परमधाम।

      हे प्रभु! आपके चरणों में लाखों-लाख प्रणाम। कैसे है आप? आज पहली बार अपने दिल की गहराइयों से आपको लिख रहा हूँ। वैसे तो प्रतिदिन प्रार्थना के समय आपसे वार्ता होती रहती है; पर मेरी बात आप तक पहुँच रही है या नहीं, मुझे नहीं पता। इस पत्र के द्वारा मैं आपसे कोई शिकायत नहीं कर रहा हूँ केवल कुछ बातें बताना चाहता हूँ। अपने स्वयं के कमजोरियों और संघर्षों के बोझ से दबा हुआ महसूस कर रहा हूँ।

     मैं आज भी उसी चौराहे पर हूँ जहाँ पर 30 साल पहले था। हालाकि पहले दिन से ही यह स्तिथि मुझे पसंद नहीं थी पर धन्यवाद आपका, आपने मेरे लिए जो भी ठीक समझा वही किया। इस विशाल और जटिल दुनिया में, मैं एक छोटा प्राणी हूँ । 'पूर्ण' नाम का कुछ भी मेरे पास नहीं हैं।  कभी-कभी मेरी अपनी ही विफलताओं का भण्डार मुझे असहनीय लगती है।

      ऐसे क्षण बार-बार मेरे सामने आते हैं जब मैं अपने कार्यों, शब्दों और विचारों में कमियों को महसूस करता हूॅ। उस समय खुद को और दूसरों को निराश करता हूॅ। कई बार महसूस करता हूँ कि आपने मुझे कुछ दिया हो या ना दिया हो, पर हमेशा मेरी इज्जत का ख्याल रखा है; मुझे अपमानित करने वाले को तुरंत सजा दिया है। धन्यवाद हे प्रभु! वैसे अब किसी से, और किसी बात की कोई शिकायत नहीं है; मैं इन सब बातों से आगे निकल गया हूँ।

     मुझे अपनी गलतियों के बोझ लिए पछतावा है और पता होते हुए भी गलत रास्ते को चुनने के लिए भी शर्मिन्दा हूॅ। मेरी कमजोरियाॅ मेरी सुख व सफलता के सामने एक अदृश्य और अडिग दीवार बनकर खड़ी हो जाती है। मैं मानता हूॅ कि मैं वह बनने में असफल रहा जो मैं बनने की ईच्छा करता था।

     घर में सबकुछ ठीक नहीं है; आपका नाम ले-लेकर हमसब दिन काट रहे हैं। दिल में तनिक उजाला बढ़ रहा है, आनंद की अनुभूति हो रही है; लगता है आपसे मिलने के दिन निकट आ रही हैं। हे प्रभु! बच्चों के आजीविका का ख्याल रखना। कई बार दीनता का बोध इतना विशाल हो जाता है कि मैं खुद को खुद के ऊपर दया करने की ईच्छा पालने लगता हूॅ। हे दीनदयाल! क्या आप दया करते है? तो फिर मैं इससे वंचित क्यों हूॅ।

    तरक्की के रास्ते बंद हैं। क्या करें। कई चीजों की कमी महसूस हो रही हैं। अब मैं पहले जितना तन से सेहतमन्द नहीं रहा, पर मन से ठीक हूँ। आपके आशीर्वाद से मेरा काम ठीक-ठाक चल रहा हैं। मेरे मालिक! मुझे मेरी कमजोरियों से ऊपर उठने में मदद कीजिए। मेरी ये सब बातें आप तक प्रार्थना के रूप में पहुचें जिससे आप मेरे लिए शक्ति, बुद्धिमत्ता, क्षमा और शांति प्रदान कर सके।

     हे प्रभु! आपकी दी गई जिम्मेदारी भी निभा रहा हूँ। क्या मैं इस दुनियां में केवल खाने-पीने और सोने आया हूँ? मुझे तुम्हारे 'काज' भी करने हैं। मैं ऐसे ही मरना नहीं चाहूँगा। प्रभु! मुझे शक्ति और सेहत बख्शे, तभी तो जिम्मेदारी निपट सकती हैं। आप सबकुछ जानते हैं, आप सनातन और शाश्वत है और मैं टूटा हुआ आपकी कृपा का पात्र बनने का अभिलाषी।

     हे परमधाम! चारों ओर हाहाकार मची हुई हैं। सारी दुनियाँ में मौत नंगा नाच रहा हैं। कब कौन कैसे गुज़र जाये कह नहीं सकते। ऐसे ही कई परिचितों के गुजर जाने का दुख हो रहा है।

     जो बीमार है वे खुद नहीं बता सकते कि उन्हें यह बीमारी कैसे हुई। चारों ओर हवा ही हवा है, पर साफ हवा मयस्सर नहीं है, लोग साँस भी ठीक से नहीं ले पा रहें हैं। लोग घुट-घुट कर और जी-जीकर मर रहे हैं। यह कैसी लीला है प्रभु! हमसब आपके दोषी हैं, हमें क्षमा करें और हमें दूसरों को भी क्षमा करने की साहस प्रदान करें।

     मुझे पता है प्रभु! हमसे बहुत सारी गलतियां हुई हैं। भक्ष्य-अभक्ष्य का मान नहीं रखा। सभी कुछ खाना शुरू कर दिया। आपने इतनी सुन्दर धरती दी; पर उसे उजाड़ने में कोई कसर नहीं रखा। आपने जो-जो हम सबके लिए नियामत बनाया उस-उस के लिए हमसब कयामत बन गये। हवा, पानी और धरती सबकों गंदा कर दिया।

      यदि दो दिन के लिए ही मेरे घर मेहमान बनकर आये तो आपको क्या मुँह दिखाऊंगा? रुखी-सूखी में भी संतुष्ट रहते हो यह मैं जानता हूँ क्योकि 'गीता' में आपने वादा किया था कि 'जो भी तुम मुझे प्रेम से अर्पण करोगे वह सब स्वीकार करूँगा'; पर जब मुझसे शहर घुमाने के लिए कहेंगे तो मैं आपको क्या जवाब दूँगा। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ। पूरा शहर कूड़ा-कर्कट से भरा है। हर कदम गंदगी से भरी हुई हैं। समझाने से भी कोई मान नहीं रहा हैं। बाहर से ज्यादा गंदगी लोगों ने अपने अन्दर जमा कर रक्खा हैं।

     भगवन! इन सब के लिए हमसब ही जिम्मेदार हैं। आपका कुछ भी काम नहीं कर पा रहा हूँ। आपने इतनी सुन्दर धरती बख्शी थी हम सबको।

      कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान् समाहर्तुमिह प्रवृत्तः।

     ॠतेऽपि त्वां न भविष्यन्ति सर्वे येऽवस्थिताः प्रत्यनीकेषु योधाः।।

(मैं लोकोंका नाश करनेवाला बढ़ा हुआ महाकाल हूँ। इस समय इन लोकों को नष्ट करने के लिये प्रवृत्त हुआ हूँ। अतः जो प्रतिपक्षियों में योद्धा हैं वे सब तेरे बिना भी नहीं रहेंगे। तेरे युद्ध न करने पर भी इन सबका नाश हो जायेगा। गीता-11-32)

     प्रभु जी! क्षमा कीजिये इन सब के लिए। हे प्रभु! यह जो मौत का तांडव चल रहा हैं, क्या आपकी दण्ड प्रक्रिया शुरू हो गई हैं? क्षमा करें-क्षमा करें प्रभु! इन गलतियों के लिए। आगे सुधारने की कोशिश करूंगा; पर अभी तो बख्श दो। इस गरीबी और बीमारी ने बहुत तबाही मचाई हैं। भगवन! मैं शिकायत नहीं कर रहा हूँ, बस आपको बता रहा हूँ।

     हे भगवन! इतनी बड़ी दुनियाँ में एक ईट भर की भी ज़मीन देने लायक नहीं समझा? कोई बात नहीं; ज्यादातर देखने में आ रहा है, बड़े-बड़े और ऊँचे मकानों वाले भी उसे एक दिन छोड़कर हमेशा के लिए चले गये। सब कुछ यहीं रह गया।

     प्रभु! इस ग़रीब की ग़रीबी बढ़ती जा रही हैं। बचत धीरे-धीरे खत्म होती जा रही हैं और तरक्की की कोई गुंजाइश भी नजर नहीं आ रही हैं। मेरे मालिक! मैं शिकायत नहीं कर रहा हूँ, बस बता रहा हूँ।

     नया रोज़गार क्या शुरू करूँ? कुछ समझ में नहीं आ रहा हैं। भगवन! सच्ची राह बता, सच्ची राह दिखा। मैं जानता हूँ कि तुम मेरी त्वरित और अंतहीन आपूर्ति हो। तुम मुश्किल समय में हमेशा मददगार रहे हो और आगे भी रहोगे।

     प्रभु! आज तक मैंने किसी का रोजगार नहीं छिना, कहना नहीं चाहिए पर आप तो अपने है और आप गवाह भी हो; कई लोगों को रोज़गार पाने लायक बनाया है और वे सब आज अपना घर अच्छे से चला रहें हैं। भगवन! क्या मैं उम्मीद करूँ कि मेरे बच्चों को अच्छा रोजगार मिलेगा।

     हे परमपिता! दया, करुणा और ईमानदारी का साथ नहीं छोड़ा; तुम इसके गवाह हो। 'सत्य' के साथ पूरी तरह निभा नहीं पा रहा हूँ। सहानुभूति रखने या प्रकट करने से सामने वाले का काम नहीं चलता। भगवन! दोनों बच्चों को समझाता रहता हूँ कि मेरी तरह नहीं बनना, एक अच्छी नौकरी करों या अपना व्यवसाय करों। भगवन! शिकायत नहीं कर रहा हूँ, बता रहा हूँ।

     प्रभु! आपसे विनती है, प्रार्थना है, दोनों हाथ जोड़कर आपको नमस्कार है! प्रणाम है! सभी जाने-अनजाने हुए ग़लतियों के लिए आपसे क्षमा मांगता हूँ। हमसब को बख्श दो। सारी मानवता कराह रही हैं। दया करो प्रभु! इन कष्टों को नष्ट करें। ऊँ शान्ति, शांति, शांति।

     प्रभुजी! आपसे एक बात जनाना चाहता हूं। आपने मुझे इस धरती पर जन्म लेने के लिए क्यूँ भेजा? एक मेरे न होने से किसी को क्या फर्क पड़ जाता? न ही आपको और न ही दूसरों को। बेकार में धरती का बोझ बढ़ा दिया।

अदृष्टपूर्वं हृषितोऽस्मि दृष्टा भयेन च प्रव्यथितं मनो मे।

तदेव मे दर्शय देवरूपं प्रसीद देवेश जगन्निवास।।

(पहले न देखे हुए इस विकराल रूप को देखकर हर्षित हो रहा हूँ और मेरा मन भय से अति व्याकुल भी हो रहा है, हे प्रभु! आप अपने उसी सुखकर विष्णु रूप को ही मुझे दिखाइये! हे देवेश! हे जगन्निवास! प्रसन्न होइये।। गीता-11-45)

     प्रभु! मैं आपसे मार्गदर्शन, कृपा और रोशनी माँगता हूँ जिससे मैं सभी की हेय दृष्टि, दया की परछाइयों से बाहर आ सकूं। मुझे खुद को आपकी छत्रछाया में  साहस के साथ आगे बढ़ने में मदद कीजिए। मैं आपके प्रेम और मार्गदर्शन पर विश्वास और भरोसा करता हूँ कि आपके माध्यम से, मैं कष्टों से मुक्त हो सकता हूँ। मैं आपके सामने नम्रतापूर्वक हाथ जोड़े खड़ा हूँ और नई शुरुआत करने के अवसर पाने का  अभिलाषा रखा हूँ।

धन्यवाद, मेरे प्यारे भगवन! आपकी अनंत कृपा के लिए।

आपका प्रिय बलराम।